देश में ओल्ड एज होम की बढ़ती संख्या इशारा कर रही है कि भारत में परिवारों को बचाने के लिए एक स्वस्थ सामाजिक परिप्रेक्ष्य की नितांत आवश्यकता है। अनुभव का खजाना कहे जाने वाले बुजुर्गों की असली जगह वृद्धाश्रम नहीं बल्कि घर है।
प्रतिवर्ष 21 जुलाई को खुशहाल परिवार दिवस के रूप में मनाया जाता है। परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो आपसी सहयोग और समन्वय से क्रियान्वित होती है और जिसके समस्त सदस्य आपस में मिलकर अपना जीवन प्रेम तथा स्नेह पूर्वक निर्वाह करते हैं। संस्कार, मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं।
कोई भी व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है, उसी से उसकी पहचान होती है और परिवार से ही अच्छे-बुरे लक्षण सीखता हैपरिवार सभी लोगों को जोड़े रखता है और दुख-सुख में सभी एक-दूसरे का साथ देते हैं। कहते हैं कि परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता हैं, पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं होता हैं, मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं और बहन से बड़ा कोई शुभ चिंतक नहीं होता। इसलिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है।
एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैदेश में ओल्ड एज होम की बढ़ती संख्या इशारा कर रही है कि भारत में परिवारों को बचाने के लिए एक स्वस्थ सामाजिक परिप्रेक्ष्य की नितांत आवश्यकता है। अनुभव का खजाना कहे जाने वाले बुजुर्गों की असली जगह वृद्धाश्रम नहीं, बल्कि घर है। ऐसा कौन-सा घर परिवार है जिसमें झगड़े नहीं होते? लेकिन यह मनमुटाव तक सीमित रहे तो बेहतर है। मनभेद कभी नहीं बनने दिया जाए। बुजुर्ग वर्ग को भी चाहिए कि वह नए जमाने के साथ अपनी पुरानी धारणाओं को परिवर्तित कर आधुनिक परिवेश के मुताबिक जीने का प्रयास करें।
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