वैज्ञानिकों के अनुसार मृत्यु का क्षण वो होता है, जब दिमाग काम करना बंद कर दे और दिल की धड़कन और सांस रुक जाएं, डॉक्टर इसे अपनी भाषा में ब्रेन डेड कहते हैं, वहीं आम भाषा में इसे मौत कहा जाता है। ब्रेन डेथ की बारे में यह देखा जाता है कि दिमाग का हिस्सा ब्रेन स्टेम (brainstem) रिस्पांस दे रहा है या नहीं। यह जांच कानूनी रूप से मृत्यु की घोषणा करने से पहले की जाती है। व्यक्ति की मौत की पुष्टि होने के बाद भी शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं।
मृत्यु के 1 घंटे के अंदर होने वाला बदलाव
मौत के बाद शरीर की सभी मसल्स रिलैक्स हो जाती हैं जिसे मेडिकल की भाषा में प्राइमरी फ्लेक्सिबिलिटी (primary flexibility) कहा जाता है। इससे पलकें अपना तनाव खो देती हैं, पुतलियां सिकुड़ जाती हैं, जबड़ा खुल जाता है और शरीर के जोड़ और अंग लचीले हो जाते हैं। मांसपेशियों में तनाव के नुकसान से त्वचा ढीली हो जाती है। वहीं हृदय-रुकने के कुछ मिनटों के भीतर पेलोर मोर्टिस नामक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे शरीर गुलाबी पड़ने लगता है क्योंकि इस प्रक्रिया में त्वचा की छोटी नसों की रक्त नालियों में पले 2 बढ़ने लगता है।
2 से 6 घंटे के बीच होने वाला बदलाव
मृत्यु के बाद जब दिल काम करना बंद कर देता है और रक्त पंप नहीं करता, तो भारी लाल रक्त कोशिकाएं गुरुत्वाकर्षण (gravity) की क्रिया से सीरम के माध्यम से डूब जाती हैं। इस प्रक्रिया को लिवर मोर्टिस (liver mortis) कहा जाता है, जो 20-30 मिनट के बाद शुरू हो जाता है। वहीं मृत्यु के 2 घंटे बाद तक मानव आंखों द्वारा देखा जा सकता है। इससे जिससे त्वचा की बैंगनी लाल मलिनकिरण हो जाती है। वहीं मृत्यु के बाद तीसरे घंटे से शरीर की कोशिकाओं के भीतर होने वाले रासायनिक परिवर्तन से सभी मांसपेशियां कठोर होने लगती हैं, जिसे रिगर मोर्टिस कहते है। इसे मृत्यु का तीसरा चरण कहा जाता है। इससे शव के हाथ-पैर अकड़ने लगते है।
7 से 12 घंटे में होने वाला बदलाव
रिगर मोर्टिस क्रिया के कारण शरीर की लगभग सभी मांसपेशियां 12 घंटे के अंदर कठोर हो जाती हैं। इस बिंदु पर, मृतक के अंगों को हिलाना-डुलाना मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति में घुटने और कोहनी थोड़े लचीले हो सकते हैं, वहीं हाथ व पैर की उंगलियां असामान्य रूप से टेढ़ी हो सकती हैं।