ब्रिटिश ऑफिसर डीएसआई संडर्स की किताब के मुताबिक, उस वक्त बाघ का शिकार करके उसकी खाल आदि लाने पर 25 रुपये बतौर इनाम दिये जाते थे। यह राशि तेंदुआ और भालू के संदर्भ में 15 रुपये रखी गई थी।पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में आज पर्यटक बाघ देखने को तरस गए हैं। हालांकि छह दशक पहले वर्ष 1965 के दौरान हालात कुछ और ही थे। उस समय पलामू क्षेत्र में बाघों की संख्या बहुत अधिक थी। बड़ी संख्या में मवेशियों पर बाघ के बढ़ते हमलों से असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती थी। तब वन विभाग की ओर से शिकार के शौकीन लोगों को 50 रुपये में बाघ के शिकार की अनुमति दी जाती थी। आगे चलकर 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू होने के बाद वन्यजीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया।सेवानिवृत्त पीसीसीएफ वन्यजीव एलआर सिंह के मुताबिक, सारंडा के वर्किंग प्लान में बाघ, भालू, हिरण आदि के शिकार की अनुमति से संबंधित दस्तावेज मौजूद हैं। हालांकि उस समय भी शिकार की खुली अनुमति नहीं दी जाती थी। जब किसी रेंज में बाघों की संख्या अधिक हो जाती और वे मवेशियों को बड़ी संख्या में अपना निवाला बनाने लग जाते तब केवल उस रेंज में शिकार की अनुमति दी जाती थी।
तब खाल लाने पर मिलता था इनाम
वाइल्ड लाइफ बायोलॉजिस्ट डीएस श्रीवास्तव ने 1898 के दौरान शिकार से जुड़े तथ्य साझा करते हुए बताया कि ब्रिटिश ऑफिसर डीएसआई संडर्स की किताब सर्वे एंड सैटेलमेंट रिकॉर्ड ऑफ पलामू में शिकार पर इनामी राशि देने का उल्लेख है। उस समय बाघ का शिकार करके उसकी खाल आदि लाने पर 25 रुपये बतौर इनाम दिये जाते थे। यह राशि तेंदुआ और भालू के संदर्भ में 15 रुपये रखी गई थी। अब हालत यह है कि लोग बाघ ढूंढ़ने को मजबूर हैं।
विशेषज्ञों की राय
● बाघों की संख्या बढ़ाने को मैदानों का विकास जरूरी
● घास के मैदान के बढ़ने से शाकाहारी वन्यजीव बढ़ेंगे
● भोजन का आधार, पानी की उपलब्धता व सुरक्षा जरूरी
बाघ घटने के कारण
● नक्सली व पुलिस के बीच संघर्ष में गोलीबारी का शोर
● इंसानी गतिविधियां, भोजन, पानी और सुरक्षा का अभाव
● अक्षुण्ण पर्यावास की तलाश में छत्तीसगढ़ की ओर प्रवास
● 2010 की गणना रिपोर्ट में बाघों की संख्या 10 बताई गई
●2014 की रिपोर्ट में पीटीआर में तीन बाघों की पुष्टि की गई