एकादशी के दिन चावल खाने की क्यों है मनाही, क्या कहता है शास्त्र

एकादशी के व्रत के बारे में सनातन धर्म के लोगों से आपने खूब सुना होगा. एकादशी का व्रत हर महीने दो बार होता है. यानी हिंदी महीने के हिसाब से जो दो पक्ष हर महीने में होते हैं. उसके कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत होता है. हर पक्ष का ग्यारहवां दिन एकादशी का होता है. हर महीने के हर पक्ष को पड़नेवाली एकादशी का अपना विशेष महत्व बताया गया है. आपको बता दें कि भगवान विष्णु की पूजा का यह खास दिन होता है. इस दिन श्री हरि नारायण के लिए लोग व्रत रखते हैं. ऐसे में जगत के पालनहार अगर प्रसन्न हो जाएं तो वह सभी कार्यों में सफलता दिताने के साथ समस्त मनोकामनाओं को भी पूरा करते हैं.

एकादशी का व्रत केवल पापों से मुक्ति दिलाने वाला ही नहीं होता बल्कि अगर सच्चे मन और पवित्र भाव से इस व्रत को किया जाए तो यह मोक्ष दिलाने वाला भी है. दरअसल एकादशी के व्रत को लेकर भी एक कहानी है. भगवान विष्णु ने मुंडन नामक राक्षस का संहार करने के लिए अपने शरीर के 11 अंगों से एक कन्या को उत्पन्न किया था. क्योंकि इस राक्षस को वरदान था कि वह किसी भी पुरुष से पराजित नहीं होगा.

वहीं आपको बता दें कि पांडवों में से एक भीम ने इस व्रत को किया था और बैकुंठ को गए थे ऐसे में एक एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. वहीं एक एकादशी निर्जला एकादशी भी है जिसमें बिना जल ग्रहण किए व्रत रखा जाता है. वहीं इस व्रत को मनोवांछित फल देने वाला बताया गया है. इसके साथ ही किसी कन्या का अगर विवाह नहीं हो रहा हो तो वह भी इस व्रत को रखे तो विवाह अति शीघ्र हो जाता है. इस दिन किसी भी पेड़ के पत्ते या खासकर तुलसी के पत्ते को तो नहीं तोड़ना चाहिए. 

इस दिन किसी भी तरह के तेल का सेवन वर्जित बताया गया है. ऐसे में इस दिन शुद्ध देसी घी में पका भोजन करना चाहिए, इस दिन शराब, नशे की चीजें और मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए. वहीं बता दें कि इस दिन चावल का सेवन वर्जित बताया गया है. क्योंकि चावल को एक जीव के बराबर माना गया है. महर्षि मेधा से जुड़ी कथा के अनुसार उनके शरीर त्याग से एकादशी के दिन अन्न उत्पन्न हुआ था जिसे चावल कहते हैं. ऐसे में जीव को चावल माना गया है. ऐसे में एकादशी के दिन चावल का भोजन वर्जित बताया गया है.  

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